नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद अब तक 65 राज्यों में चुनाव हुआ है. इनमें 28 चुनाव बीजेपी जीती है. 40 चुनाव में NDA जीती है. चुनावों में मिली जीत के बाद विजय समारोह में पीएम मोदी सोलहवीं बार बीजेपी मुख्यालय पहुंचे. इस बात पर भी ध्यान दिलाया कि अरविंद केजरीवाल की हार से भले कांग्रेस चिंतित नहीं है, लेकिन देश के दूसरे विरोधी क्षेत्रीय दलों की टेंशन बढ़ गई है.
ऐसे में अब जिन लोगों को लग रहा है कि नरेंद्र मोदी ने केवल केजरीवाल या कांग्रेस को ही हराया है. उन्हें ये जानकर हैरानी होगी कि दिल्ली में बीजेपी की जीत ने असल में केजरीवाल के साथ ही ममता बनर्जी, अखिलेश यादव, शरद पवार,. उद्धव ठाकरे समेत इंडिया गठबंधन के उन सभी क्षेत्रीय दलों को झटका दिया है. जिन्हें उम्मीद थी कि केजरीवाल मोदी का विजय रथ दिल्ली में रोक सकते हैं.
याद करिए जब ममता बनर्जी, शरद पवार, उद्धव ठाकरे से मिलते समर्थन पर केजरीवाल सबका धन्यवाद करते रहे. दरअसल केजरीवाल की राजनीति कांग्रेस का वोट काटकर ही 2013 में दिल्ली में शुरु हुई. कांग्रेस को लगता है कि अगर क्षेत्रीय दलों से हाथ मिलाते रहेंगे तो अपनी सियासत सिमट जाएगी. तभी तो दिल्ली में कोई गठबंधन ही नहीं हुआ. तब इंडिया गठबंधन के गैर कांग्रेस दलों के समर्थन से केजरीवाल चाहते थे कि एंटी बीजेपी वोट कांग्रेस ज्यादा ना पाए.
लेकिन लाख कोशिश के बावजूद कांग्रेस का वोट दिल्ली में 2020 के मुकाबले 2.5 फीसदी बढ़ा. जिससे दावा है कि 13 सीट पर AAP के उम्मीदवारों को हार का सामना करना पड़ा. दिल्ली में कांग्रेस का खाता नहीं खुला, लेकिन केजरीवाल से खींचतान का खाता जारी है. जहां राहुपरल गांधी दिल्ली हार पर लिखते हैं कि प्रदूषण, महंगाई और भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई जारी रहेगी. कांग्रेस केजरीवाल की हार को दिल्ली का मूड बताती है.
वहीं इंडिया गठबंधन के गैर कांग्रेसी दल जैसे ममता, शरद पवार, उद्धव ठाकरे, अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव की पार्टी की ये चिंता है कि उनकी केजरीवाल के समर्थन में कांग्रेस को किनारे करके एकजुट होने से भी मोदी की जीत रोकी नहीं जा सकी. इंडी गठबंधन के दल कांग्रेस का कैरेक्टर मसझने लगे हैं, ये अहसास हो रहा है कि जिस वोटबैंक को छीना है, वो कांग्रेस वापस पाने में जुटी है.
